1973 के आरंभ में कच्चे तेल तथा पेट्रोलियम उत्पादों के अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यों में आनुक्रमिक तथा तीव्र वृद्धि के कारण पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम आधारित औद्योगिक कच्चे माल में प्रगामी आत्मनिर्भरता की आवश्यकता को अनुभव कर तेल उद्योग (विकास) अधिनियम 1974 गठित किया गया।
तेल उद्योग (विकास) अधिनियम की उद्देशिका में स्पष्ट रूप से इंगित किया गया है कि अधिनियम का उद्देश्य तेल उद्योग के विकास के लिए एक बोर्ड का गठन करना है और इस काम के लिए कच्चे तेल तथा प्राकृतिक पदार्थ तथा उससे संबंधित मामलों पर उत्पाद कर लगाना है।
बोर्ड शाश्वत उत्तराधिकार और समान्य मुद्रा वाला पूर्वोक्त नाम का एक निगमित निकाय होगा, उसे स्थावर और जंगम दोनों प्रकार की सम्पत्ति के अर्जन, धारण और वययन करने की और संविदा करने की भाक्ति होगी और उक्त नाम से वह वाद लाएगा और उस पर वाद लाया जाएगा।
अधिक जानकारी के लिए तेल उद्योग (विकास) अधिनियम 1974 सं.47 देखें।
बोर्ड के कार्य
6(1) इस अधिनियम के और तदधीन बनाए गए नियमों के उपबन्धो के अधीन रहते हुए, बोर्ड ऐसी रीति से ऐसे विस्तार तक और ऐसी शर्तो और निबन्धनों पर जो वह ठीक समझे, ऐसे सभी अध्युपायों के संप्रवर्तन के लिए जो उसकी राय में तेल उद्योग के विकास में साधक हों, वित्तीय और अन्य सहायता देगा।
(2) उपधारा (1) के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, बोर्ड उस उपधारा के अधीन निम्नलिखित रीति से सहायता दे सकता है, अर्थात्:-
(क) किसी तेल उद्योग समुत्थान या अन्य व्यक्ति को जो धारा 2 के खण्ड (ट) में निर्दिष्ट क्रियाकलापों में लगा हुआ है या लगने वाला है, अनुदान या उधार देना;
(ख) किसी तेल उद्योग समुत्थान या अन्य व्यक्ति द्वारा लिए गए ऐसे उधारों की, जो पच्चीस वर्ष से अनाधिक अवधि के भीतर प्रतिसंदेय हों और बाजार में चालू किए गए हों या किसी तेल उद्योग समुत्थान या अन्य व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे बैंक से, जो भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 में यथा परिभाषित अनुसूचित बैंक या राज्य सहकारी बैंक हैं, लिए गए उधारों की ऐसी शर्तो और निबन्धनों पर जो करार पाए जाएं प्रत्याभूति देना;
(ग) भारत के बाहर से पूंजी माल के आयात के संबंध में किसी तेल उद्योग समुत्थान या अन्य व्यक्ति से अथवा भारत के भीतर पूंजी माल के क्रय के संबंध में ऐसे समुत्थान या अन्य व्यक्ति द्वारा शोध्य आसीमित संदायों की, ऐसी शर्तो और निबन्धनों पर जो करार पाए जाएं प्रत्याभूति देना;
(घ) किसी तेल उद्योग समुत्थान या अन्य व्यक्ति द्वारा भारत के बाहर किसी देश में, किसी बैंक या वित्तीय संस्था से विदेशी करेंसी में लिए गए उधारों की या किए गए प्रत्यय ठहरावों की, ऐसी शर्तो और निबंधनों पर जो करार पाएं जाए, प्रत्याभूति देना; परन्तु ऐसी कोई प्रत्याभूति केन्द्रीय सरकार के पूर्वानुमोदन के बिना नहीं दी जाएगी;
ड.) किसी तेल उद्योग समुत्थान के स्टॉक, शेयरों, बंधपत्रों या डिवेंचरों के पुराधारण की हामीदारी करना और उनके संबंध में अपनी बाध्यताओं को पूरा करने में जिन स्टॉक, शेयरों, बंधपत्रों या डिवेंचरों को उसे लेना पड़े उन्हें अपनी आस्तियों के भाग रूप रखे रहना;
(च) केन्द्रीय सरकार या किसी विदेशी वित्तीय संगठन या प्रत्यय अभिकरण द्वारा दिए गए उधार या अग्रिम धन के या अभिदाय किए गए डिबेंचरों के संबंध में, किसी तेल उद्योग समुत्थान के साथ किसी कारोबार के संव्यवहार में, केन्द्रीय सरकार के या उसके अनुमोदन से, ऐसे संगठन या अभिकरण के अभिकर्ता के रूप में कार्य करना;
(छ) किसी तेल उद्योग समुत्थान के स्टॉक या शेयरों के लिए अभिदाय करना;
(ज) किसी तेल उद्योग समुत्थान के ऐसे डिबेचरों के लिए अभिदाय करना जो अभिदाय की तारीख से 25 वर्ष से अनाधिक अवधि के भीतर प्रतिसंदेय हैः
परन्तु इस खंड की कोई बात बोर्ड को किसी तेल उद्योग समुत्थान के ऐसे डिबेंचरों के लिए अभिदाय करने से निवारित करने वाली नहीं समझी जाएगी जिन पर परादेय रकम बोर्ड के विकल्प पर उस अवधि के भीतर जिसमें डिबेंचर प्रतिसंदेय हैं, उस समुत्थान के स्टॉक या शेयरों में संपरिवर्तनीय है।
स्पष्टीकरण:- इस खण्ड में, किसी उधार या अग्रिम धन के संबंध में “जिन पर परादेय रकम” पद से ऐसे उधार या अग्रिम धन पर उस समय संदेय मूलधन, ब्याज और अन्य प्रभार अभिप्रेत है जब उन रकमों को स्टॉक या शेयरों में संपरिवर्तित किया जाना है।
(3) उपधारा (1) के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उन अध्युपायों के अन्तर्गत, जिनके संप्रवर्तन के लिए बोर्ड उस उपधारा के अधीन सहायता दे सकता है, निम्नलिखित के लिए या के रूप में अध्युपाय भी हैं, अर्थात:-
(क) भारत के भीतर (जिनके अन्तर्गत भारत का कॉन्टीनेन्टल शेल्फ भी है) या भारत के बाहर तेल का पूर्वेक्षण और खोज;
(ख) कच्चे तेल के उत्पादन, हैंडलिंग, भण्डारकरण और परिवहन के लिए सुविधाओं की व्यवस्था;
(ग) पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों का परिष्करण और विपणन;
(ध) पेट्रो-रसायनों और उर्वरकों का विनिर्माण और विपणन;
(ड.) वैज्ञानिक, तकनीकी और आर्थिक अनुसंधान जो तेल उद्योग को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपयोगी हो सके;
(च) तेल उद्योग के किसी क्षेत्र में प्रयोगात्मक या आरम्भिक अध्ययन;
(छ) तेल उद्योग के किसी क्षेत्र में लगे हुए या लगने वाले कार्मिकों का भारत के भीतर या भारत के बाहर प्रशिक्षण और ऐसे अन्य अघ्युपाय जो विहित किए जाए।
(4) बोर्ड अपने कृत्यों के प्रयोग में अपने द्वारा दी गई सेवाओं के लिए ऐसी फीस ले सकता है या ऐसा कमीशन प्राप्त कर सकता है जो वह समुचित समझे।
(5) बोर्ड किसी तेल उद्योग समुत्थान को या अन्य व्यक्ति के द्वारा दिए गए उधार या अग्रिम धन के संबंध में किसी लिखित को प्रतिफल के लिए अंतरित कर सकता है।
(6) बोर्ड वे सभी बाते कर सकता है जो इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों के निर्वहन के आनुवांगिक या पारिणामिक हों।